Wednesday, 1 September 2021

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दोहा/काबुल अमेरिकी सेनाओं की वापसी के बाद तालिबान के विदेश मंत्री कहे जाने वाले वरिष्‍ठ नेता शेर मोहम्‍मद स्‍टानिकजई ने खुद कतर में भारतीय दूतावास पहुंचकर भारतीय राजदूत दीपक मित्‍तल से मुलाकात की है। दोनों पक्षों के बीच यह पहली औपचारिक बातचीत है। इससे पहले शेर मोहम्‍मद ने कहा था कि वह भारत और अफगानिस्‍तान के बीच जारी आर्थिक और सांस्‍कृतिक र‍िश्‍तों को बरकरार रखने के पक्षधर हैं। उन्‍होंने भारत और पाकिस्‍तान को सलाह दी थी कि दोनों देश अपने द्विपक्षीय मुद्दे खुद सुलाझाएं.... यह वही शेर मोहम्‍मद स्‍टानिकजई हैं जिन्‍होंने वर्ष 1970 और 80 के दशक में भारतीय सैन्‍य अकादमी से प्रशिक्षण हासिल किया था। उस दौरान आईएमए में उनके दोस्‍त शेर मोहम्‍मद को शेरू के नाम से बुलाते थे। आज शेर मोहम्‍मद तालिबान के उन 7 प्रमुख नेताओं में से हैं जिन्‍होंने दोहा में तालिबान और अमेरिका के बीच बातचीत का जिम्‍मा संभाल रखा है। ऐसा पहली बार है जब शेरू से मुलाकात के बाद भारत ने यह स्‍वीकार किया है कि उसका तालिबान के साथ राजनयिक संबंध है। भारतीय सैन्‍य अकादमी में अधिकारी के रूप में प्रशिक्षण ल‍िया शेर मोहम्‍मद को भारतीय सेना ने वर्ष 1979 से 1982 के बीच में प्रशिक्ष‍ित किया था। शेर मोहम्‍मद ने नौगांव के आर्मी कैडेट कॉलेज में एक जवान के रूप में और बाद में भारतीय सैन्‍य अकादमी देहरादून में एक अधिकारी के रूप में प्रशिक्षण हासिल किया था। शेर मोहम्‍मद तालिबान के उन दुर्लभ नेताओं में से एक हैं जो अंग्रेजी बोल सकते हैं। वह तालिबान के पहले के शासन के दौरान अफगानिस्‍तान के उप विदेश मंत्री रह चुके हैं और दुनिया के कई देशों की यात्रा की है। वर्ष 1996 में शेर मोहम्‍मद ने वॉशिंगटन की यात्रा की थी ताकि अमेरिका के तत्‍कालीन राष्‍ट्रपति बिल क्लिंटन तालिबान की सरकार को मान्‍यता दे दें। हालांकि उनकी यह यात्रा असफल रही और क्लिंटन ने मान्‍यता नहीं दी। शेर मोहम्‍मद चीन की भी यात्रा कर चुके हैं। आईएमए के शेरू के बैच के उसके साथी बताते हैं कि स्‍टानिकजई मजबूत शरीर का था, उसकी लंबाई बहुत ज्‍यादा नहीं थी। इसके अलावा वह कट्टर धार्मिक विचारों वाला भी नहीं था। स्‍टानिकजई की उम्र उस समय 20 साल की थी, जब वह भगत बटैलियन की केरेन कंपनी में 45 जेंटलमैन कैडेट के साथ आईएमए में आया था। 'आईएमए में शेरू को सब पसंद करते थे' रिटायर्ड मेजर जनरल डीए चतुर्वेदी उसके बैचमेट थे। वह कहते हैं, 'उसे सभी लोग पसंद करते थे। वह अकैडमी के दूसरे कैडेट से कुछ ज्‍यादा उम्र का लगता था। उसकी रौबदार मूंछें थीं। उस समय उसके विचार कट्टर नहीं थे। वह एक औसत अफगान कैडेट जैसा ही था जो यहां आकर खुश था।' रिटायर्ड मेजर जनरल चतुर्वेदी को परम विशिष्‍ट सेवा मेडल, अति विशिष्‍ट सेवा मेडल और सेना मेडल मिल चुका है। गंगा में डुबकी लगा चुका है शेर मोहम्‍मद रिटायर्ड कर्नल केसर सिंह शेखावत ने बताया, 'वह एक आम युवा था। मुझे याद है एक बार हम ऋषिकेश में गंगा में नहाने गए थे। उस दिन का एक फोटो है जिसमें शेरू ने आईएमए की स्विमिंग कॉस्‍ट्यूम पहन रखी है। वह बहुत दोस्‍ताना स्‍वभाव का था। हम वीकेंड पर जंगलों और पहाड़ों पर घूमने जाते थे। आईएमए में डेढ़ साल में उसने प्री कमिशन ट्रेनिंग पूरी की। इसके बाद उसने अफगान नेशनल आर्मी लेफ्टिनेंट के तौर पर जॉइन की। इसके कुछ पहले ही सोवियत रूस ने अफगानिस्‍तान पर कब्‍जा किया था। साल 1996 में तालिबान के साथ आया शेरू साल 1996 तक स्‍टानिकजई ने सेना छोड़ दी और तालिबान में शामिल हो गया। साल 1997 में न्‍यूयॉर्क टाइम्‍स में छपे एक लेख में स्‍टानिकजई को तालिबान सरकार का कार्यकारी विदेश मंत्री बताया गया था। इसमें यह भी कहा गया था कि उसने अंग्रेजी बोलना भारत के कॉलेज से सीखा था। बाद के वर्षों में वह तालिबान का प्रमुख वार्ताकार बन गया था। उसका इंग्लिश बोलने का कौशल और मिलिटरी ट्रेनिंग की वजह से उसे तालिबान में अच्‍छा ओहदा मिला। जब तालिबान ने दोहा में अपना राजनीतिक ऑफिस खोला तो वहां तालिबान के सीनियर नेता वहां आने लगे। साल 2012 से स्‍टानिकजई तालिबान का प्रतिनिधित्‍व करता रहा। भारतीय दूतावास को बंद नहीं करने की दी थी सलाह भारत के राजदूतों को निकालते समय शेरू ने इच्‍छा जताई थी कि मोदी सरकार अपनी राजनयिक उपस्थिति को अफगानिस्‍तान में बनाए रखें। इस आशय का प्रस्‍ताव खुद शेर मोहम्‍मद लेकर आया था। शेर मोहम्‍मद दोहा में मौजूद ताल‍िबानी नेताओं के दल में शामिल था। अब्‍बास ने इस अनौपचारिक प्रस्‍ताव से भारतीय दल को चौका दिया था। हालांकि भारत ने उसकी बात को नहीं माना और भारतीय राजदूत और अन्‍य कर्मचारियों को काबुल से निकाल लिया था। खबरों के मुताबिक अब्‍बास दोहा में मौजूद तालिबानी नेताओं में तीसरे नंबर पर आता था। अब्‍बास ने कहा कि वह तालिबान के कब्‍जे के बाद भारत की काबुल की सुरक्षा स्थिति को लेकर चिंताओं से वाकिफ है लेकिन उसे दूतावास और कर्मचारियों को लेकर चिंतित नहीं होना चाहिए। तालिबानी नेता अब्‍बास ने खासतौर पर पाकिस्‍तानी आतंकी संगठन लश्‍कर-ए-तैयबा और लश्‍कर-ए-झांगवी के लड़ाकुओं की तैनाती की खबर का जिक्र किया और दावा किया कि काबुल में सभी चेकपोस्‍ट तालिबान के हाथों में है न कि इन संगठनों के पास।


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