
वॉशिंगटन अमेरिका ने पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई और तालिबान के संबंधों पर खुलकर बोलने से इनकार किया है। अमेरिकी सीनेट की आर्म्ड सर्विस कमेटी के सामने पेश हुए रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन ने सीनेटरों से कहा है कि तालिबान के साथ पाकिस्तान और उसकी खुफिया एजेंसी आईएसआई के संबंधों पर केवल बंद कमरों के भीतर ही चर्चा की जा सकती है। इस बैठक में उनके साथ अमेरिकी सेना के दो टॉप रैंक के जनरल भी मौजूद थे। अमेरिकी रक्षा मंत्री बोले- बंद कमरे में करेंगे बातचीत ऑस्टिन ने सीनेट की आर्म्ड सर्विस कमेटी के सामने कहा कि पाकिस्तान के बारे में एक गहरी बातचीत शायद यहां एक बंद कमरे में उचित होगी। उनके दो जनरलों, यूएस ज्वाइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ के प्रमुख जनरल मार्क मिले और यूएस सेंट्रल कमांड के कमांडर जनरल फ्रैंक मैकेंजी ने भी यही कहा। मिले ने कहा कि मैंने पिछले कुछ साल में और हाल ही में पाकिस्तानियों के साथ कई बार बातचीत की है और मेरे दिमाग में कोई सवाल नहीं है कि पाकिस्तान और तालिबान के बीच संबंध तेजी से जटिल होते जा रहे हैं। अमेरिका क्यों नहीं खुलकर बोल रहा? अमेरिकी संसद में एक दिन पहले ही 22 सांसदों ने तालिबान और उसके सहयोगी देशों पर प्रतिबंध लगाने वाला बिल पेश किया है। अगर यह बिल पास हो जाता है तो इससे बने कानून के जरिए तालिबान के सहयोगी देशों को प्रतिबंधित करना पड़ेगा। अमेरिका यह बखूबी जानता है कि तालिबान को शरण देने के पीछे खुले तौर पर पाकिस्तान का हाथ है। ऐसे में अगर सार्वजनिक रूप से बाइडन प्रशासन इस बात को स्वीकार करता है तो उसे न चाहते हुए भी पाकिस्तान पर नए प्रतिबंध लगाने होंगे। तालिबान के साथ बातचीत का बैक चैनल बंद होने का डर अमेरिका को डर है कि अगर उसने पाकिस्तान पर कार्रवाई की तो इसका असर अफगानिस्तान में उसके हितों पर पड़ेगा। अफगानिस्तान से अमेरिकी फौज की वापसी के बाद बाइडन प्रशासन अब पाकिस्तान की मदद से तालिबान के साथ संपर्क में है। अगर पाकिस्तान ने प्रतिबंधों के कारण अपना पल्ला झाड़ लिया तो तालिबान के साथ बातचीत का रास्ता भी बंद हो जाएगा। दूसरी बड़ी बात कि पाकिस्तान तालिबान को अमेरिका के खिलाफ और ज्यादा भड़का सकता है। पाकिस्तान पर कार्रवाई से चीन को होगा फायदा अमेरिका यह जानता है कि अगर उसने पाकिस्तान पर प्रतिबंध लगाए तो इसका सीधा फायदा चीन को होगा। चीन तेजी से अफगानिस्तान में खाली हुई अमेरिका की जगह को भर रहा है। उसने तालिबान सरकार को हजारों करोड़ रुपए की आर्थिक सहायता भी दी है। ऐसे में प्रतिबंधों के कारण पाकिस्तान अमेरिका के विरोध में चीन की और ज्यादा मदद करेगा। पाकिस्तान में अमेरिकी सेना के मिशन को होगा नुकसान यूएस सेंट्रल कमांड (सेंटकॉम) के शीर्ष जनरल फ्रैंक मैकेंजी ने सीनेट के सामने कबूला था कि अमेरिकी सेना पाकिस्तान के साथ काम कर रही है। उन्होंने कहा कि हमने पिछले 20 साल में अफगानिस्तान से पश्चिमी पाकिस्तान में जाने के लिए रास्ता बनाया है। उस क्षेत्र में कुछ कम्यूनिकेशन के लिए कुछ लैंडलाइंस भी मौजूद हैं। हम अगले कुछ दिन या हफ्ते पाकिस्तानियों के साथ काम करेंगे। हम यह देखना चाहते हैं कि पाकिस्तान के साथ काम करने के परिणाम क्या निकलते हैं। ऐसे में अगर पाकिस्तान पर प्रतिबंध लगते हैं तो इससे अमेरिकी सेना के ऑपरेशन को भी नुकसान पहुंचेगा। पाकिस्तान की दखलअंदाजी से तालिबान दो फाड़ तालिबान में मुल्ला बरादर और मुल्ला यूसुफ के नेतृत्व वाला गुट पाकिस्तान की बढ़ती दखलअंदाजी से चिढ़ा हुआ है। यही कारण है कि अफगानिस्तान में इस्लामिक अमीरात सरकार के ऐलान के बाद भी ये दोनों नेता काबुल से दूरी बनाए हुए हैं। मुल्ला बरादर को तालिबान सरकार में उप प्रधानमंत्री और मुल्ला यूसुफ को रक्षा मंत्री बनाया गया है। मुल्ला यूसुफ तालिबान सरगना मुल्ला उमर का बेटा और मुल्ला बरादर का भांजा है। पाकिस्तान के इशारों पर चल रहा हक्कानी पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई का गुलाम हक्कानी नेटवर्क काबुल में किसी भी अन्य समुदायों के साथ सत्ता साझा नहीं करना चाहता। वह अपनी सरकार में महिलाओं की भागीदारी को पहले ही सिरे से खारिज कर चुका है। हक्कानी नेटवर्क इस समय पूरी तरह से आईएसआई के इशारों पर चल रहा है। ऐसे में विरोधी गुट के नेता काबुल छोड़कर तालिबान की जन्मस्थली कंधार में बैठे हुए हैं।
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