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पिरामिडों के देश मिस्र में पिछले कुछ दिनों से एक के बाद एक दुर्भाग्यपूर्ण हादसे हो रहे हैं। मिस्र में 26 मार्च को ट्रेन हादसे में 32 लोगों की मौत हो गई और 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए। इसके ठीक अगले दिन 27 मार्च को एक इमारत के गिरने से 18 लोगों की जान चली गई और 24 लोग घायल हो गए। इन हादसों से अभी मिस्र उबरा नहीं था कि स्वेज नहर में विशालकाय मालवाहक जहाज फंस गया। एक के बाद एक हो रहे इन हादसों पर ट्टिवटर पर लोग सवाल उठा रहे हैं और कह रहे हैं कि मिस्र को सबसे ताकतवर राजा फिरौन का श्राप लगा है। उनका कहना है कि मिस्र में ये हादसे ऐसे समय पर हो रहे हैं जब प्रशासन आगामी तीन अप्रैल को 22 शाही ममी को राजधानी काहिरा के एक चर्चित म्यूजियम में स्थानांतरित करने की योजना बना रहा है। आइए जानते हैं क्या है पूरा मामला और राजा फिरौन का श्राप....
मिस्र में आगामी 3 अप्रैल को एक रॉयल परेड आयोजित की जाएगी और कई प्राचीन ममी को तहरीर स्क्वायर पर स्थित नैशनल म्यूजियम से काहिरा में स्थित नैशनल म्यूजियम में भेजा जाएगा। इन ममियों में राजा रामसेस द्वितीय, सेती प्रथम, रानी हटशेपसूट आदि शामिल हैं। मिस्र सरकार का कहना है कि काहिरा के म्यूजियम में सारी ममी को एक साथ रखने से पर्यटक उन्हें एक ही जगह देख सकते हैं। साथ ही पैसे के संकट से जूझ रही सरकार को उम्मीद है कि पर्यटक बड़ पैमाने पर आएंगे और इससे कोरोना काल में उसकी आय में वृद्धि होगी। उधर, मिस्र में लगातार हो रहे हादसों के बीच ट्विटर पर दावा किया जा रहा है कि इन घटनाओं के पीछे राजा फराओ का श्राप लगा है। उनका कहना है कि मिस्र के ममी के शाही परेड से ठीक पहले इतनी घटनाओं ने कई सवाल पैदा कर दिए हैं। साद अबेदीन लिखते हैं, 'इन सबको देखने के बाद लगता है कि फराओ का श्राप वास्तविक है।'
डेली मेल के मुताबिक इस प्राचीन श्राप में कहा गया था कि जो व्यक्ति राजा फराओ की शांति में खलल डालेगा, उसके पास मौत बहुत तेजी से आएगी। ट्विटर यूजर फ्रेडी बेंजामिन कहते हैं, 'फिरौन के श्राप या ममी के श्राप में कहा गया है कि यह उसे लगेगा जो प्राचीन मिस्र के ममियों खासतौर पर फिरौन की ममी की शांति को भंग करेगा। यह श्राप चोरों और पुरातत्वविदों में कोई भेद नहीं करता है और दावा किया जाता है कि इससे लोगों का भाग्य बिगड़ जाता है, उन्हें बीमारी होती है या उनकी मौत हो जाती है।' शरीफ अहमद ने लिखा कि मिस्र के प्रसिद्ध देवता होरुस ने कहा था कि उन्होंने मिस्र के राजाओं और रानियों की आत्मा से संपर्क किया है और उन्होंने आश्वासन दिया है कि यह उनका काम नहीं है। इन घटनाओं के पीछे उन देशों और समूहों का हाथ है जो मिस्र से घृणा करते हैं। इस तरह ट्विटर पर मिस्र के श्राप को लेकर कई दावे किए जा रहे हैं।
इस बीच पुरातत्वविदों ने ट्विटर पर चल रहे दावों को खारिज कर दिया है। उन्होंने कहा कि मिस्र में हो रही इस तरह की घटनाएं केवल एक संयोग मात्र हैं। मिस्र के पूर्व मंत्री अल नाहर ने कहा कि ममी के एक जगह से दूसरी जगह भेजे जाने का इन हादसों से कोई संबंध नहीं है। चर्चित पुरातत्वविदों ने श्राप के दावे को आधारहीन बताया है और कहा कि इन ममी को दूसरी जगह भेजे जाने से उनका सम्मान ही बढ़ेगा। बता दें कि फिरौन मिस्र का सबसे ताकतवर बादशाह था, जिसने 16वीं शताब्दी ईसा पूर्व में शासन किया था। कहा जाता है कि विदेशी आक्रमणकारी हक्सोस राजवंश के साथ लड़ाई में पकड़े जाने के बाद फिरौन को मौत के घाट उतार दिया गया था। तब से फिरौन को ममी बनाकर थेब्स में नेक्रोपोलिस के भीतर दफना दिया गया था। इस ममी की खोज 1881 में की गई थी। तब यह पता नहीं चल सका था कि उनके शरीर पर कई जानलेवा चोट के निशान थे। अब जब उनके सिर का सीटी स्कैन किया गया है तो वैज्ञानिकों को कई गंभीर घाव के निशान दिखाई दिए हैं।
राजा फिरौन की मौत एक बार फिर से विवादों में घिर गई है। वैज्ञानिकों का दावा है कि फिरौन के सिर पर लगी चोटों को जानबूझकर छिपाया गया था। यह भी पता लगा है कि मरने के समय फिरौन के हाथ को उनकी पीठ के पीछे करके बांधा गया था। इस रिसर्च टीम के प्रमुख काहिरा यूनिवर्सिटी के सलारामोलॉजिस्ट सहर सलीम ने कहा कि इससे पता चलता है कि फिरौन वास्तव में मिस्र को आजाद कराने के लिए अपने सैनिकों के साथ अग्रिम पंक्ति में थे। शोधकर्ताओं ने यह भी पता लगाया है कि फिरौन को कई अलग-अलग हथियारों के जरिए एक से ज्यादा हमलावरों ने मारा था। क्योंकि, उनके शरीर पर पांच अलग-अलग तरह के हथियारों से बने चोट के निशान मिले हैं। दावा किया गया है कि अगर एक हमलावर ने मारा होता तो वह अलग-अलग ऐंगल से एक ही हथियार का प्रयोग किया होता, लेकिन इसमें चोट के निशान बताते हैं कि हथियार एक से ज्यादा थे।
अबु धाबी में विशाल हिंदू मंदिर की नींव का निर्माण अप्रैल के अंत तक हो जाएगा। मंदिर प्रबंधन ने पारंपरिक पत्थर से बनने वाले इस मंदिर को लेकर यह जानकारी दी है। बोचासनवासी अक्षर पुरुषोत्तम स्वामीनारायण संस्था (BAPS) संगठन 450 दिरहम यानी करीब 888 करोड़ रुपये की लागत से यह मंदिर निर्माण करा रहा है। इसकी नींव रखने के काम को दिखाता एक वीडियो कुछ दिन पहले ही शेयर किया गया है। यह अबु धाबी के अबु मुरेखाह इलाके में 27 एकड़ क्षेत्र में बनवाया जा रहा है।
प्रॉजेक्ट इंजिनियर अशोक खोंडेटी इस प्रॉजेक्ट की क्वॉलिटी और विकास को मॉनिटर कर रहे हैं। उनका कहना है कि निर्माणकार्य बुनियाद के आखिरी चरण में है जो जमीन से 4.5 मीटर नीचे है। उन्होंने बताया कि जनवरी के बाद से 4500 क्यूबिक मीटर कॉन्क्रीट डाला जा चुका है। इस नींव में दो टनल बने हैं जिनके लिए पत्थर भारत से पहुंचाए गए हैं। जल्द ही इन्हें लगाने का काम शुरू होगा। नींव का काम अप्रैल में पूरा होने के बाद मई के आखिर में पत्थर का काम भी शुरू हो जाएगा।
गल्फ न्यूज को प्रशासन ने बताया कि दो टनल लोगों को लिफ्ट तक ले जाने और पुजारियों को मंदिर तक ले जाने के लिए बनाए गए हैं। नींव का काम पूरा होने के बाद नक्काशीदार पत्थर और मार्बल को ऊपर लगाकर मंदिर का आकार दिया जाएगा। गल्फ न्यूज कि रिपोर्ट के मुताबिक पारंपरिक पत्थर के मंदिर की फाइनल डिजाइन और हाथ से नक्काशी किए गए पत्थर के स्तंभ की तस्वीरें नवंबर में जारी की गई थीं जिन्हें भारत में बनाया गया है।
भारत में राजस्थान और गुजरात के कलाकारों ने इन्हें बनाया है। मंदिर में राजस्थान के गुलाबी पत्थर और इटली के मैसेडोनिया के मार्बल का इस्तेमाल किया गया है। इस मंदिर पर हिंदू महाग्रंथों की तस्वीरें और कहानियां होंगी और अरब देशों की कलाकारी भी। इसमें एक पुस्तकालय, एक कक्षा, एक मजलिस और एक सामुदायिक केंद्र भी होगा। झरने और जलाशय इसकी सुंदरता बढ़ाएंगे।
दुनियाभर के लिए संकट का सबब बना महाविशालकाय मालवाहक जहाज एवर गिवेन 6 दिन की कड़ी मेहनत के बाद अब पूरी तरह से निकल चुका है और अपने सफर पर रवाना हो गया है। एशिया और यूरोप के बीच माल लेकर जाने वाला, पनामा के ध्वज वाला एवर गिवेन (Ever Given) नामक मालवाहक जहाज मंगलवार को स्वेज नहर में फंस गया था। इससे स्वेज नहर के दोनों तरफ समुद्र में जाम लग गया था और 350 से ज्यादा मालवाहक जहाज फंस गए थे। इस कंटेनर शिप को चला रहे चालक दल के सभी 25 सदस्य भारतीय हैं। एवर गिवेन को निकालने के लिए रात-दिन चली इस कार्रवाई में दो चीजों का सबसे महत्वपूर्ण हाथ था। पहला सुपरमून और दूसरा दैत्याकार जहाज Mashhour। आइए जानते हैं कैसे निकला एवर गिवेन जहाज...
स्वेज नहर में फंसे जहाज को निकालने के लिए बचाव दल दिन-रात मेहनत कर रहा था लेकिन एवर गिवेन के जल्द निकलने की कोई उम्मीद नहीं दिखाई दे रही थी। करीब 400 मीटर लंबे और 59 मीटर चौड़े इस विशालकाय जहाज ने स्वेज नहर के दोनों तरफ के रास्तों को ब्लॉक कर दिया था। 193.3 किलोमीटर लंबी स्वेज नहर भूमध्य सागर को लाल सागर से जोड़ती है। इसी रास्ते से दुनिया के करीब 30 फीसदी शिपिंग कंटेनर गुजरते हैं। पूरी दुनिया के 12 फीसदी सामानों की ढुलाई भी इसी नहर के जरिए होती है। इस महासंकट के बीच सुपरमून बचाव दल के लिए वरदान साबित हुआ और इसकी वजह से समुद्र में ज्वार आ गया। ज्वार की वजह से समुद्र में पानी बढ़ने से एवर गिवेन जहाज को रास्ता मिल गया और वह फिर से पानी में तैरने लगा। एवर गिवेन के निकलने से दुनिया ने चैन की सांस ली है। जहाज के फंसने से दुनिया में कई सामानों के किल्लत होने का खतरा पैदा हो गया था। यही नहीं समुद्र में फंसे जहाजों में कई जिंदा जानवर भी लदे हुए थे जिससे उनके मरने का खतरा पैदा हो गया था।
एवर गिवेन के निकलने में सुपरमून के साथ-साथ दैत्याकार जहाज Mashhour का भी बहुत बड़ा योगदान रहा। इस जहाज ने प्रतिघंटे 70 हजार क्यूबिक मीटर की दर से बालू को स्वेज नहर से हटाया। इस जहाज को गुरुवार को काम पर लगाया गया था। स्वेज नहर प्राधिकरण के चीफ ओसामा रबिए ने कहा कि इस दैत्याकार Mashhour जहाज ने एवर गिवेन के नीचे से बालू निकालने का ज्यादातर काम किया। उन्होंने कहा कि यह काम कर गया और इसके बाद जहाजों को खींचने वाले टगबोट को एवर गिवेन को खींचने का मौका मिल गया। इसके अलावा कई छोटे-छोटे जहाजों की मदद से एवर गिवेन के तलछट से रेत और कीचड़ को निकाला गया। कुल 27 हजार क्यूबिक मीटर बालू और कीचड़ को फंसे हुए जहाज के आसपास से हटाया गया। इस शानदार सफलता के बाद अब Mashhour अब मशहूर हो गया है। एवर गिवेन के निकलने के बाद Mashhour के चालक दल ने जश्न मनाया और कहा कि हम नंबर वन हैं।
एवर गिवेन जहाज को ऐसे समय पर निकाला गया जब वर्कर इसके सामानों को उतारने की तैयारी कर रहे थे ताकि उसके वजन को हल्का किया जा सके। इस जहाज पर कुल 18300 कंटेनर लदे हुए थे। इनमें 20 कंटेनर तो केवल सेक्स टॉय भरे हुए थे। इन सेक्स टॉय को क्रिसमस और वेलेंटाइन डे के लिए बेचा गया था। सेक्स टॉय को बनाने वाली कंपनी ईडीसी रिटेल ने कहा कि उन्हें करोड़ों रुपये का नुकसान होता अगर इनको अफ्रीका का चक्कर लगाकर भेजा जाता। इससे 5 से 7 दिन ज्यादा भी लगते। उन्होंने कहा कि ज्यादा पैसा लगने के बाद भी खतरा था क्योंकि सर्दियों में दक्षिण अफ्रीका के आसपास समुद्र में बहुत ज्यादा हलचल होती है। यही नहीं इन इलाकों में समुद्र डाकू भी बहुत ज्यादा सक्रिय हैं। इस बीच एवर गिवेन के निकलने से सोमवार शाम से स्वेज नहर फिर से खुल गई है।
इस व्यस्ततम समुद्री मार्ग पर एवर गिवेन के फंसने से हर दिन 9.6 अरब डॉलर का नुकसान हो रहा था। हर साल इस रास्ते से 19 हजार जहाज गुजरते हैं। यही नहीं करोड़ों बैरल कच्चा तेल और एलएनजी भी इसी रास्ते से ढोया जाता है। चीन में बने फर्निचर, कपडे़, सुपरमार्केट के सामान स्वेज नहर के रास्ते ही यूरोप तक जाते हैं। अगर यह नहर बंद हो जाय तो उन्हें 5000 किमी का चक्कर लगाकर अफ्रीका के रास्ते से यूरोप जाना होगा। इस जाम की वजह से खाड़ी देशों से तेल का निर्यात रुक गया था जिससे तेल और अन्य सामानों के दाम बढ़ने लगे थे। कंटेनर शिप एवर गिवेन चीन से माल लादने के बाद नीदरलैंड के पोर्ट रॉटरडैम के लिए जा रहा था। इस दौरान उसने हिंद महासागर से यूरोप में जाने के लिए स्वेज नहर का रास्ता अपनाया। जो मंगलवार की सुबह स्थानीय समयानुसार लगभग 07:40 पर स्वेज पोर्ट के उत्तर में फंस गया। इस जहाज को 2018 में बनाया गया था, जिसे ताइवानी ट्रांसपोर्ट कंपनी एवरग्रीन मरीन संचालित करती है।
रियाद सऊदी अरब के नेतृत्व में गठबंधन सेना ने यमन की राजधानी सना में हूती विद्रोहियों के एक शिविर को हवाई हमला करके तबाह कर दिया है। सऊदी...