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इजरायल ने ईरान और सीरिया से जारी तनाव के बीच अपने बॉर्डर्स पर रोबोट स्नाइपर्स और सुसाइड ड्रोन की पूरी फौज तैनात कर दी है। ये ड्रोन कई किलोमीटर दूर बैठे अपने लक्ष्य को पलक झपकते उड़ा सकता है। वहीं, रोबोटिक स्नाइपर रात के अंधेरे में भी बॉर्डर के करीब घुसपैठ करने वालों को सबक सिखाने में सक्षम है। इन हथियारों को इजरायली बॉर्डर के कई इलाकों में तैनात किया गया है। गाजा पट्टी से हमास के लड़ाके अक्सर विस्फोटकों से भरे बैलून को इजरायल की तरफ उड़ाते रहते हैं। यह रोबोटिक स्नाइपर ऐसे बैलूनों को पलक झपकते मारकर गिरा सकता है। हालांकि, इन हथियारों की तैनाती को लेकर इजरायल को कई मानवाधिकार संगठनों के विरोध का भी सामना करना पड़ रहा है। हाल के कुछ साल में इजरायल ने ड्रोन और रोबोटिक टेक्नोलॉजी में बड़ा निवेश किया है। जिसकी मदद से उसने कई ऐसे हथियार बनाए हैं जो दुनिया में किसी और देश के पास नहीं हैं।
इजरायल के हेरोप सुसाइड ड्रोन, रॉबेल व्हील बैटलफील्ड रोबोट और ऑटोमेटिक बॉर्डर कंट्रोल मशीनगन ने इजरायल की सुरक्षा को कई गुना बढ़ाया है। यही कारण है कि स्थापना के बाद से अरब देशों के कई हमले झेल चुके इजरायल पर अब कोई भी देश आक्रमण करने की सोचता भी नहीं है। वर्तमान समय में पूरी दुनिया में हथियारों को उन्नत और ऑटोमेटिक बनाने को लेकर तरह तरह की तकनीकों का विकास किया जा रहा है। हर देश चाहता है कि युद्ध के दौरान उसकी सेना के जवान कम से कम घायल हों या मारे जाएं। यही कारण है कि रोबोटिक हथियार और ड्रोन्स की मांग तेजी से बढ़ रही है। आर्मीनिया और अजरबैजान के बीच पिछले साल हुए युद्ध में भी ड्रोन का बड़े पैमाने पर उपयोग देखा गया था। जिसके बाद से पूरी दुनिया में ड्रोन टेक्नोलॉजी को लेकर एक विशेष तेजी देखी गई।
इजरायल ने गाजा सीमा पर कई टॉवरों पर ऑटोमेटिक रोबोट स्नाइपर गन को तैनात किया है। .5 कैलिबर की ये मशीनगन अपने रेंज में आने वाले दुश्मन को पलक झपकते खत्म कर सकती है। यह मशीनगन सैमसन रिमोट कंट्रोल वेपन सिस्टम पर आधारित है। जिसमें लगे सेंसर ऑटोमेटिक अपने लक्ष्य को ढूंढ सकता है। दूर सुरक्षित दूरी पर बैठा ऑपरेटर इस मशीन के जरिए सीमा पर घुसपैठियों को दिन या रात दोनों समय आसानी से शूट कर सकता है। इन्हें वर्तमान में अलार्म सेंसर वाले स्टील के दरवाजों वाले केबिन में सेट किया जा रहा है।
सुसाइड ड्रोन्स गाइडेड मिसाइल और ड्रोन टेक्नोलॉजी से मिलकर बने होते हैं। ये ड्रोन दुश्मन के क्षेत्र में अंदर तक घुसपैठ करने की क्षमता भी रखते हैं। साइज में छोटे और वजन में हल्के होने के कारण अधिकतर रडार इनका सिग्नेचर पकड़ नहीं पाते हैं। इन ड्रोन्स के अंदर बड़ी मात्रा में विस्फोटक भरा होता है। अगर इन्हें लक्ष्य नहीं मिला तो ये वापस बेस पर लौट आते हैं, लेकिन अगर इन्हें हमला करना होता है तो खुद को लक्ष्य से लड़ाकर उसे बर्बाद कर देते हैं। ऐसे हमले में ये ड्रोन पूरी तरह बर्बाद हो जाते हैं। इजरायल के हेरोप ड्रोन का इस्तेमाल भारतीय सेना भी करती है।
इजरायली Harop Kamikaze Drones को कई नाम से जाना जाता है। इसे हीरो-120 या किलर ड्रोन भी कहा जाता है। इसे इजरायली एयरोस्पेस इंडस्ट्री के एमबीटी डिविजन ने विकसित किया है। इस ड्रोन का उपयोग अजरबैजान की सेना 2016 की झड़प के दौरान भी कर चुकी है। इस ड्रोन में अलग से कोई मिसाइल नहीं होती है, बल्कि यह ड्रोन खुद में एक मिसाइल है। इसमे लगा हुआ एंटी-रडार होमिंग सिस्टम दुश्मन के रडार को भी जाम कर सकता है। जिससे अगर कोई इस मार नहीं गिराता या अगर इसे अपना लक्ष्य नहीं मिलता है तो यह वापस अपने बेस पर आ जाएगा। लेकिन, अगर इसे अपना लक्ष्य दिख गया तो यह ड्रोन उससे टकराकर खुद को उड़ा लेगा।
इजरायली Harop ड्रोन एक बार में 6 घंटे की उड़ान भर सकता है। इसे बेस स्टेशन से 1000 किलोमीटर की दूरी तक ऑपरेट किया जा सकता है। इसका समुद्र या जमीन पर टोही गतिविधियों या दुश्मन के खिलाफ मिसाइल के रूप में उपयोग किया जा सकता है। यह ड्रोन पहले से तय प्रोग्रामिंग के हिसाब से खुद उड़ान भर सकता है या फिर ऑपरेटर भी इसके निर्धारिक रास्ते को बदल सकता है। इसमें मौजूद इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल सेंसर के जरिए बेस पर मौजूद ऑपरेटर अपने निशाने को चुन सकता है।
रूस अपने टी-14 आर्मटा टैंक और घातक बनाने की तैयारियों में जुटा हुआ है। रूसी मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, दुनिया का सबसे शक्तिशाली टैंक आर्मटा अब बिना क्रू मेंबर्स के अपने निशाने पर गोले दागने में सक्षम है। इससे रूस की भविष्य में होने वाले जंग की तैयारियों से जोड़कर देखा जा रहा है। दरअसल नोर्गोनो काराबाख क्षेत्र में आर्मीनिया और अजरबैजान के बीच हुए युद्ध के बाद टैंकों की उपयोगिता पर ही सवाल उठने शुरू हो गए हैं। कई विशेषज्ञों का दावा है कि आने वाले दिनों में युद्ध के दौरान टैंकों को आसानी से निशाना बनाया जा सकता है। भारी वजन के कारण टैंकों के संचालन और रखरखाव में कई मुश्किलें आती हैं। हालांकि, अमेरिका और रूस सहित कई देश अब भी बड़ी संख्या में टैंकों को अपनी सेना में शामिल कर रहे हैं। भारत ने भी कुछ दिन पहले ही अर्जुन एमके-1ए मेन बैटल टैंक के 118 यूनिट के निर्माण का ऑर्डर दिया है।
टी-14 आर्मटा टैंक को हाल में ही रिमोट कंट्रोल के जरिए टेस्ट किया गया है। जिसमें दूर बैठे इसके चालक दल न रिमोट कंट्रोल से इस टैंक को बखूबी चलाया है। रिमोट कंट्रोल के कारण इस टैंक के क्रू सैकड़ों लीटर फ्यूल और टैंकों के गोले की रेंज से बाहर सुरक्षित रहेंगे। दरअसल, अक्सर यह देखा जाता है कि शॉर्ट सर्किट या किसी लापरवाही के कारण टैंक के फ्यूल या विस्फोटकों में आग लग जाती है और इसका खामियाजा टैंकों के अंदर बैठे क्रू को भुगतना पड़ता है। लेकिन, दूर से इस टैंक को ऑपरेट करने के दौरान न तो दुश्मनों के एंटी टैंक मिसाइलों और न ही किसी दुर्घटना से इन चालकों को कोई खतरा होगा।
सैन्य निर्माण से जुड़े सूत्रों के हवाले से रूसी न्यूज एजेंसी स्पूतनिक ने कहा कि जंग के मैदान में टी -14 आर्मटा टैंक बिना क्रू की मौजूदगी के अपने लक्ष्यों को खोजने और उन्हें बर्बाद करने में सक्षम है। इस परीक्षण के दौरान टी -14 ने सफलतापूर्वक अपने लक्ष्यों को बर्बाद कर दिया। रूस के सैन्य इतिहास में यह पहला मौका है जब दूर बैठे चालक दल ने रिमोट कंट्रोल के जरिए ऑपरेट करते हुए किसी टैंक का परीक्षण किया है। जिसके बाद यह कहा जा रहा है कि इस टैंक का गनर दुश्मनों के इलाके से दूर बैठकर उनपर निशाना साध सकता है। इससे युद्ध के दौरान होने वाली जनहानि से बचा जा सकता है।
रूस के टी-14 आर्मटा टैंक के फायर कंट्रोल सिस्टम (एफसीएस) में एक डिजिटल कैटलॉग है। जिसके जरिए दुश्मनों के टैंक, बख्तरबंद गाड़ियां और हेलीकॉप्टरों की स्पेशल सिग्नेचर का पता लगाया जा सकता है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एलिमेंट्स मशीन के ऑनबोर्ड कंप्यूटिंग सुविधाओं के जरिए यह टैंक स्वतंत्र रूप से अपने लक्ष्य को खोजने में सक्षम है। एक साथ कई लक्ष्यों को पहचानने के बाद यह टैंक प्राथमिकता के आधार पर अपने टॉरगेट पर फायरिंग कर सकता है। रूसी मीडिया का दावा है कि ऐसी क्षमता वाला कोई भी दूसरा टैंक किसी भी देश के पास नहीं है।
टी-14 आर्माटा टैंक रूसी सेना का मुख्य युद्धक टैंक (एमबीटी) है। 80 किलोमीटर प्रति घंटे की टॉप स्पीड से चलने वाली इस टैंक का वजन करीब 55 टन है। इस टैंक को पहली बार 2015 में बनाया गया था। तब से लेकर अब तक रूसी सेना के परेड में कई बार इन टैंकों को प्रदर्शित किया जा चुका है। रूस की आर्मटा को नेक्स्ट जेनरेशन का टैंक माना जाता है।यह टैंक 125 एमएम के स्मूथबोर कैनन से लैस होती है, जो 10 से 12 राउंड प्रति मिनट के दर से गोले दागने में सक्षम है। इस टैंक से एंटी एयरक्राफ्ट मिसाइल को भी फायर किया जा सकता है, जो दुश्मन के लो फ्लाइंग ऑब्जेक्ट्स जैसे हेलिकॉप्टर या छोटे ड्रोन का मार गिराने में सक्षम है। अभी तक इस टैंक के केवल 20 यूनिट को ही बनाया जा सका है। हालांकि, रूसी सेना इसके भी अपडेट वर्जन टी-15 आर्मटा का उपयोग कर रही है।
रूस ने बाल्टिक सागर में अमेरिका के साथ बढ़ते तनाव के बीच अपने अचूक निशाने वाले बीएमपीटी -72 टर्मिनेटर टैंक को तैनात कर दिया है। यह टैंक गोले बरसाने के साथ दुश्मनों के हेलिकॉप्टर और कम स्पीड से उड़ने वाले विमानों को भी मार गिराने में सक्षम है। इन टैंको को रूस के केंद्रीय सैन्य जिले में तैनात किया गया है। इस टैंक को रूस की कंपनी Uralvagonzavod ने बनाया है। टर्मिनेटर के नाम से मशहूर यह टैंक शहरी क्षेत्र में लड़ाई के दौरान अपने दूसरे साथी टैंक्स और ऑर्मर्ड फाइटिंग व्हीकल को नजदीकी सहायता प्रदान करता है। जिससे दुश्मनों के हेलिकॉप्टर, ड्रोन या कम ऊंचाई पर उड़ने वाले दूसरे हवाई जहाज निशाना नहीं बना पाते हैं। BMPT-72 टैंक को पहली बार 2013 में रूसी आर्म्स एक्सपो में प्रदर्शित किया गया था।
टर्मिनेटर टैंक एक कॉम्बेट प्रूवन वेपन है। यानी युद्ध क्षेत्र में भी इस टैंक की महारत को साबित किया गया है। रूस ने इसे 2017 में सीरिया के युद्धग्रस्त क्षेत्रों में तैनात किया गया था। सीरिया के हेममीम हवाई अड्डे पर जब सीरियाई राष्ट्रपति बशर असद रूसी चीफ ऑफ जनरल जनरल वलेरी गेरासिमोव से मिले थे, तब उन तस्वीरों में यह टैंक दिखाई दिया था। टर्मिनेटर टैंक के प्रमुख हथियारों में 130 एमएम की एटाका-30 मिसाइल लॉन्चर दो 30 मिमी 2 ए 42 ऑटो-तोप शामिल हैं। जबकि, इस टैंक के दूसरे हथियारों में दो 30 मिमी एजी -17 डी ग्रेनेड लांचर और 7.62 मिमी पीकेटीएम मशीन गन हैं। इस टैंक को रूस की प्रसिद्ध टी-72 मेन बैटल टैंक के चेचिस पर बनाया गया है। टी-72 टैंक का उपयोग रूस-भारत समेत दुनियाभर के कई देशों में किया जाता है। भारत समेत कई देश ऐसे भी हैं जो इस टैंक को लाइसेंस के तहत अपने ही देश में बनाते भी हैं।
यूरोपीय देशों में अमेरिकी सेना की बढ़ती धमक के बीच रूस ने भी अपनी नौसैनिक ताकत को बढ़ाना शुरू कर दिया है। रूस की कई परमाणु पनडुब्बियां बाल्टिक सागर और कारा सागर के इलाके में जबरदस्त गश्त कर रही हैं। इतना ही नहीं, रूसी नौसेना में 2019 में शामिल दुनिया की सबसे बड़ी परमाणु पनडुब्बी बेलगोरोड की भी रणनीतिक तैनाती की जा चुकी है। स्पेशल मिशन को अंजाम देने में माहिर इस पनडुब्बी में इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइलें तैनात हैं, जो पलक झपकते वॉशिंगटन डीसी और न्यूयॉर्क जैसे बड़े शहरों को खत्म कर सकती है। इसी हफ्ते अमेरिका ने अपने परमाणु बॉम्बर्स की एक टीम को रूस के नजदीक नॉर्वे में तैनात किया है। जिसके बाद से ही दोनों देशों में तनाव और बढ़ गया है। इन दिनों राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के विरोधी एलेक्सी नवलनी की गिरफ्तारी के बाद से रूस और यूरोपीय देशों के बीच भी तनाव जारी है। ऐसे में अमेरिका और यूरोपीय देशों के बीच बढ़ते रक्षा सहयोग से रूस चिंतित है और अपनी सुरक्षा को पुख्ता बनाने के लिए जी-जान से जुटा हुआ है।
604 फीट लंबी बेलगोरोड पनडुब्बी में छह की संख्या में पोसिडन लॉन्ग रेंज स्ट्रैटजिक न्यूक्लियर टॉरपीडो तैनात होते हैं। इस टॉरपीडो के जरिए रूसी नौसेना खुफिया जानकारी जुटाती है। यह एक अनमैंड अंडरवॉटर व्हीकल है, जो दुश्मन के इलाके में घुसकर खुफिया जानकारी इकट्ठा कर सकता है। पोसिडन को स्टेटस-6 ओशेनिक मल्टीपरपज सिस्टम के नाम से भी जाना जाता है। यह अंडरवॉटर ड्रोन दुश्मनों के ठिकानों पर परंपरागत और परमाणु मिसाइलों के साथ हमला करने में भी सक्षम है। ऐसी स्थिति में रूस की बेलगोरोड पनडुब्बी दुश्मन के जद से काफी दूर रहते हुए उनके ठिकानों की न केवल रेकी कर सकती है, बल्कि जरूरत पड़ने पर बर्बाद भी कर सकती है। पोसिडन अंडरवॉटर ड्रोन को 2018 में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने दुनिया के सामने पेश किया था।
बेलगोरोड पनडुब्बी समुद्र में 1700 फीट की गहराई तक गोता लगा सकती है। इतनी गहराई पर केवल कुछ ही देशों की पनडुब्बियां जा सकती हैं। 1700 फीट की गहराई तक गोता लगाने के कारण दुश्मन देशों के रडार और सोनार इसका पता बहुत मुश्किल से लगा पाएगें। ऐसे में अगर यह पनडुब्बी अमेरिका के नजदीक पहुंच जाती है तो यूएस नेवी के लिए इसे डिटेक्ट करना मुश्किल हो सकता है। इस पनडुब्बी को आधिकारिक तौर पर प्रोजेक्ट -09852 के तहत बनाया गया था। इसे मूल रूप से मूल रूप से ऑस्कर-2 क्लास की क्रूज मिसाइल पनडुब्बी से विकसित कर स्पेशल मिशन पनडुब्बी के रूप में विकसित किया गया है। इस पनडुब्बी के पानी के विस्थापन अमेरिका की ओहियो क्लास की पनडुब्बियों से 50 फीसदी अधिक है।
यह पनडुब्बी इतने गुपचुप तरीके से अपने मिशन को अंजाम देगी कि इसे रूस का अंडरवॉटर इंटेलिजेंस एजेंसी नाम दिया गया है। बेलगोरोड पनडुब्बी के कप्तान सीधे राष्ट्रपति पुतिन को रिपोर्ट करेंगे। विशेषज्ञों ने संभावना जताई है कि अगर इन परमाणु तारपीडो में से किसी एक का भी प्रयोग किया जाता है तो समुद्र में रेडियोएक्टिव सुनामी आ सकती है। इस पनडुब्बी की तैनाती अमेरिका समेत कई देशों के लिए खतरा बन सकती है। बेलगोरोड पनडुब्बी 80 मील प्रतिघंटा की रफ्तार से चल सकती है। जो समुद्र के भीतर 1700 फीट गहराई तक जा सकेगी। इस पनडुब्बी को सोनार से पता लगाना बहुत मुश्किल है।
इसमें लगे तारपीडो अपने साथ दो मेगाटन के परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम हैं। इनकी क्षमता अमेरिका द्वारा जापान के हिरोशिमा पर गिराए गए परमाणु बम से 130 गुना ज्यादा है। सोवियत संघ के विघटित होने के बाद से रूस कमजोर हो गया था। इसके अलावा अमेरिका और उसके सहयोगी देशों के प्रतिबंधों ने रूसी अर्थव्यवस्था को बहुत नुकसान पहुंचाया था। इस समय एक बार फिर दुनिया के कई देशों को हथियारों की सप्लाई कर फिर से अपना प्रभुत्व कायम करने का प्रयास कर रहा है। हालांकि, अमेरिका काट्सा जैसे नए प्रतिबंधों को लाकर दुनियाभर के देशों को रूप से हथियार न खरीदने की धमकी दे रहा है। यही कारण है कि कुछ दिन पहले अमेरिका ने तुर्की पर प्रतिबंध लगाए थे। अमेरिकी प्रशासन ने भारत को भी परोक्ष रूप से रूस से एस-400 डिफेंस सिस्टम न खरीदने को कहा है।
परमाणु शक्ति से चलने वाली गाइडेड मिसाइल सबमरीन यूएसएस ओहियो आकार और प्रहार दोनों के मामले में दुनिया के शीर्ष हथियारों में से एक है। लंदन के रॉयल यूनाइटेड सर्विसेज इंस्टीट्यूट के विशेषज्ञ सिद्धार्थ कौशल के अनुसार, अमेरिका की ओहियो क्लास की पनडुब्बी दुश्मन के क्षेत्र में अंदर तक घुसपैठ कर सैनिकों और मिसाइलों से हमला कर सकती है। अमेरिका के ओहियो क्लास की पनडुब्बियों में यूएसएस ओहियो के अलावा यूएसएस मिशिगन, यूएसएस फ्लोरिडा और यूएसएस जॉर्जिया शामिल हैं। ये सभी पनडुब्बियां घातक एंटी शिप मिसाइलों से लैस हैं और इनमें दुश्मन की पनडुब्बियों से बचाव करने की भी सबसे आधुनिक तकनीकी लगी हुई है। इस पनडुब्बी में पहले परमाणु मिसाइलों को भी लगाया गया था, लेकिन बाद में उन्हें हटाकर दूसरी इंटरकॉन्टिनेंटर बैलिस्टिक मिसाइलों को लगाया गया है। ओहियो को ताकत देने के लिए एक परमाणु रिएक्टर को लगाया गया है, जो इसके दो टर्बाइनों के लिए ऊर्जा प्रदान करता है।
अमेरिकी एयरफोर्स की हालिया एयरस्ट्राइक के बाद से सीरिया एक बार फिर विश्व की दो महाशक्तियों के बीच जंग का मैदान बनता जा रहा है। रूस ने अमेरिका को चेतावनी देते हुए असद सरकार के समर्थक मिलिशिया को निशाना न बनाने को कहा है। उधर अमेरिकी मीडिया फॉक्स न्यूज ने दावा किया है कि साल 2018 में सीरिया में अमेरिकी एयरस्ट्राइक से पैदा हुए तनाव के कारण अमेरिका की वर्जीनिया क्लास परमाणु पनडुब्बी यूएसएस जॉन वार्नर रूसी युद्धपोत को डुबाने के लिए तैयार बैठी थी। अमेरिका को डर था कि सीरिया के समर्थन में रूस उसकी नौसेना के युद्धपोतों को निशाना बना सकता है। जिसके बाद यूएसएस जॉन वॉर्नर को रूसी युद्धपोतों के खिलाफ कार्रवाई के लिए तैयार रखा गया था। उस समय इसी पनडुब्बी ने असद सरकार के समर्थक मिलिशिया पर बेहद घातक टॉमहॉक मिसाइलें दागी थीं।
2018 में अमेरिका और रूस के बीच सीरिया में तनाव इतना बढ़ गया था कि दुनिया में तीसरे विश्व युद्ध का खतरा मंडराने लगा था। पूरी दुनिया इस युद्ध को टालने के लिए सक्रिय थीं, क्योंकि रूस और अमेरिका ने सीरिया में अपने सबसे ज्यादा घातक हथियारों का जखीरा तैनात कर दिया था। रूस ने जहां असद सरकार के समर्थक सेनाओं की सुरक्षा के लिए एस-400 और एस-300 डिफेंस सिस्टम को एक्टिव कर दिया था, वहीं अमेरिका ने एफ-16, एफ-22 लड़ाकू विमानों को स्टेंडबॉय पर रहने का आदेश दिया था। अमेरिका की कई किलर पनडुब्बियां दिन-रात सीरिया के चारों ओर चक्कर काटती थीं। ऐसे में अगर रूस या अमेरिका में से किसी भी देश ने दूसरे देश के सेना को निशाना बनाया होता तो आज दुनिया का नक्शा ही कुछ और होता।
परमाणु शक्ति से चलने वाली फास्ट अटैक वर्जीनिया क्लास की पनडुब्बियां टॉमहॉक क्रूज मिसाइलों से लैस होती हैं। स्टील्थ फीचर से लैस होने के कारण दुश्मन के रडार इस पनडुब्बी को डिटेक्ट नहीं कर पाते हैं। एंटी सबमरीन वॉरफेयर में इस पनडुब्बी का दुनिया में कोई तोड़ नहीं है। अमेरिकी नौसेना में इन्हें लॉस एंजिलिस क्लास पनडुब्बियों के जगह पर कमीशन किया गया था। इस क्लास की पनडुब्बियां अमेरिकी नौसेना में 2060 से 2070 तक सर्विस में रहेंगी। अमेरिकी नौसेना ऐसी 66 पनडुब्बियों के निर्माण की योजना पर काम कर रही है, जिसमें से 19 अभी एक्टिव हैं जबकि 11 पनडुब्बियों को बनाया जा रहा है। इसके अतिरिक्त अमेरिकी नेवी ने 6 पनडुब्बियों का और ऑर्डर दिया हुआ है।
वर्जीनिया क्लास की पनडुब्बियों में तैनात नौसैनिकों को अगर खाने-पीने की वस्तुएं न लेनी हो तो वह कई महीनों तक पानी के नीचे गायब रह सकते हैं। इसमें खुद के ऑक्सीजन जेनरेटर्स लगे होते हैं, जो पनडुब्बी में तैनात नौसैनिकों के लिए ऑक्सीजन पैदा करते हैं। इसके अलावा परमाणु रिएक्टर लगे होने के कारण इनके पास ऊर्जा का अखंड भंडार होता है। जबकि परंपरागत पनडुब्बियों में डीजल इलेक्ट्रिक इंजन होता है। उन्हें इसके लिए डीजल लेने और मरम्मत के काम के लिए बार बार ऊपर सतह पर आना होता है। पानी के नीचे अगर कोई पनडुब्बी छिपी हुई तो उसका पता लगाना बहुत ही कठिन काम होता है। लेकिन, अगर वह पनडुब्बी किसी काम से एक बार भी सतह पर दिखाई दे दे तो उसको डिटेक्ट करना और पीछा करना दुश्मन के लिए आसान हो जाता है।
मिसाइल एक्सपर्ट्स बताते हैं कि इस तरह के हमलों के लिए टॉमहॉक मिसाइलें बहुत सटीक हैं। इन क्रूज मिसाइलों का रेंज 1,250 किलोमीटर से 2,500 किलोमीटर के बीच होता है। अपेक्षाकृत कम ऊंचाई पर ट्रैवल करने वाले इन मिसाइलों को समुद्र से छोड़ा जाता है। कम ऊंचाई पर होने की वजह से इन्हें रेडार ट्रेस नहीं कर पाते। टॉमहॉक मिसाइलों को अडवांस नैविगेशन सिस्टम के जरिए गाइड किया जाता है। इस मिसाइल की लंबाई 18 फीट 3 इंच (5.56 मीटर) होती है, बूस्टर के साथ लंबाई 5 फीट होती है। मिसाइल की स्पीड 885.139 किलोमीटर प्रति घंटे से 1416.22 किलोमीटर प्रति घंटे तक हो सकती है।
टॉमहॉक मिसाइलें टारगेट तक सीधी रेखा में नहीं जाते, इसलिए इन्हें बीच में मारकर नहीं गिराया जा सकता। अमेरिका ने इन मिसाइलों का सबसे पहले ऑपरेशन डेजर्ट स्टॉर्म में इस्तेमाल किया गया था। ये मिसाइलें अपने साथ 450 किलोग्राम से अधिक विस्फोटक ले जा सकते हैं। ये न्यूक्लियर हथियारों को ले जाने में भी सक्षम हैं। हालांकि अमेरिका ने इन्हें न्यूक्लियर इस्तेमाल से अलग रखा है। एक टॉमहॉक मिसाइल की कीमत करीब साढ़े पांच करोड़ रुपये बैठती है। टॉमहॉक ब्लॉक-2 मिसाइल तो 2500 किमी तक मार कर सकती है। यह मिसाइल बिना बूस्टर के 5.5 मीटर और बूस्टर के साथ 6.5 मीटर तक लंबी होती है। फिलहाल यह मिसाइल अमेरिका और ब्रिटेन की रायल नेवी में तैनात है। ताइवान ने भी अमेरिका से इस मिसाइल की खरीद के लिए समझौता किया है।
पश्चिमी साइबेरिया में पिछले साल अचानक एक विशाल क्रेटर देखा गया था। जियोसाइंसेज में छपी एक स्टडी के मुताबिक रूस के रिसर्चर्स ने बताया है कि धरती की सतह के नीचे मीथेन में होने वाले विस्फोटकों की वजह से 20 मीटर चौड़ा और 30 मीटर गहरा गड्ढा बन गया है। इस ब्लोआउट क्रेटर की तस्वीरें यहां से निकलने वाले ड्रोन विमानों ने लीं और फिर 3डी मॉडलिंग के आधार पर इसके आकार का अनैलेसिस किया गया। दूसरी स्टडीज के साथ इसके नतीजे मिलाने पर पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते तापमान के असर से बर्फ पिघलती है और मीथेन गैस रिलीज होती है।
स्टडी में कहा गया है कि आर्कटिक में गर्माहट की वजह से permafrost पिघल रहा है। वायुमंडल में बढ़ती गैसों के कारण जलवायु परिवर्तन भी तेज हो रहा है। रूसी आर्कटिक पश्चिमिी साइबेरिया वाले हिस्से, खासकर यमल और गाइडन पेनिनसुला में permafrost के कारण गैसों का उत्सर्जन हो रहा है। साल 2014-2020 में Oil and Gas Research Institute of the Russian Academy of Sciences (OGRI RAS) के विशेषज्ञों ने यहां स्टडी की।
इनके तले में गैस निकलने के सीधे निशान मिले हैं। गैस निकलन की वजह से ये क्रेटर बनते हैं। वहीं, ऐसे जोन जहां यह गैस निकलती है और हवा में मीथेन की मात्रा बढ़ती है, इनके बीच संबंध भी स्थापित किया गया है। यूरोपियन स्पेस एजेंसी की Sentinel-5p सैटलाइट पर TROPOspheric Monitoring Instrument (TROPOMI) ने इसका डेटा रिकॉर्ड किया है। मीथेन अपने उत्सर्जन के 20 साल में कार्बनडायऑक्साइड की तुलना में जलवायु परिवर्तन में 84 गुना ज्यादा इजाफा करती है। (फोटो: Nature)
जब हमेशा जमी रहने वाली बर्फ की ऊपरी मिट्टी वाली सतह गर्म होती है और माइक्रोबियल जीवन काम करना शुरू कर देता है, तो ये गैसें रिलीज होती हैं। बर्फ के क्रिस्टल्स में मीथेन मॉलिक्यूल भी होती हैं जो इसके पिघलने से उत्सर्जित होते हैं। रूस में दो-तिहाई हिस्सा permafrost से घिरा है जो साइबेरिया में 1500 मीटर तक गहरा हो सकता है। वैज्ञानिक इस बात की स्टडी कर रहे हैं कि permafrost के पिघलने से कितनी मीथेन और कार्बन डायऑक्साइड रिलीज होती हैं। अभी के आकलन के मुताबिक यह कई अरब टन हो सकता है। इतना 2100 तक तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ाने के लिए काफी है।
blowout crater
रियाद सऊदी अरब के नेतृत्व में गठबंधन सेना ने यमन की राजधानी सना में हूती विद्रोहियों के एक शिविर को हवाई हमला करके तबाह कर दिया है। सऊदी...