मिस्र में पाई जाने वाली ममी अपने अंदर कई राज समेटे होती हैं। कई बार धीरे-धीरे इनके रहस्यों से पर्दा उठता है। ऐसा ही कुछ पोलैंड के वैज्ञानिकों को मिला जब उन्होंने पाया कि जिस ममी को एक पुजारी (Priest) का माना जा रहा था, वह दरअसल एक गर्भवती महिला की थी। वॉरसॉ ममी प्रॉजेक्ट के तहत अपनी तरह की पहली खोज करने वाले इन वैज्ञानिकों की हैरानी का ठिकाना नहीं रहा। यह टीम 2015 से प्राचीन मिस्र की ममीज पर काम कर रही है। स्कैन में जब ममी के पेट के अंदर एक छोटा सा पैर दिखा, तब उन्हें समझ आया कि उनके हाथ क्या लगा है।Pregnant Mummy in Egpyt: प्रॉजेक्ट के सह-संस्थापक वोहटेक एमंड ने CNN को बताया कि ममी को 1826 में पोलैंड लाया गया था। तब माना जा रहा था कि यह एक महिला की है लेकिन 1920 के दशक में इस पर मिस्र के पुजारी का नाम लिखा पाया गया।

मिस्र में पाई जाने वाली ममी अपने अंदर कई राज समेटे होती हैं। कई बार धीरे-धीरे इनके रहस्यों से पर्दा उठता है। ऐसा ही कुछ पोलैंड के वैज्ञानिकों को मिला जब उन्होंने पाया कि जिस ममी को एक पुजारी (Priest) का माना जा रहा था, वह दरअसल एक गर्भवती महिला की थी। वॉरसॉ ममी प्रॉजेक्ट के तहत अपनी तरह की पहली खोज करने वाले इन वैज्ञानिकों की हैरानी का ठिकाना नहीं रहा। यह टीम 2015 से प्राचीन मिस्र की ममीज पर काम कर रही है। स्कैन में जब ममी के पेट के अंदर एक छोटा सा पैर दिखा, तब उन्हें समझ आया कि उनके हाथ क्या लगा है।
माना जाता रहा कि पुजारी की है

यूनिवर्सिटी ऑफ वॉरसॉ के पुरातत्वविद मार्जेना ओजारेक-जील्क और उनके सहयोगी इस रिसर्च को पब्लिश करने की तैयारी में हैं। उन्होंने स्टेट न्यूज एजेंसी PAP को बताया है, 'अपने पति स्टैनिसलॉ के साथ हमने तस्वीरें देखों और उसके पेट में एक छोटा सा पैर देखा।' प्रॉजेक्ट के सह-संस्थापक वोहटेक एमंड ने CNN को बताया कि ममी को 1826 में पोलैंड लाया गया था। तब माना जा रहा था कि यह एक महिला की है लेकिन 1920 के दशक में इस पर मिस्र के पुजारी का नाम लिखा पाया गया।
..तो पता चला गर्भवती महिला है

रिसर्च के दौरान कंप्यूटर टोमोग्राफी की मदद से बिना उसकी पट्टियां खोले पुष्टि की गई कि यह एक महिला की ममी थी क्योंकि इसमें पुरुषों का प्राइवेट पार्ट नहीं थी। 3डी इमेजिंग में लंबे-घुंघराले बाल और स्तनों की पुष्टि की गई। उन्होंने बताया कि महिला की जब मौत हुई तब वह 20 से 30 साल की रही होगी और भ्रूण 26-30 हफ्तों का। उसकी मौत कैसे हुई यह अभी नहीं पता चला है और यह जानने के लिए और जांच की जरूरत होगी।
खड़े हुए सवाल

एक्सपर्ट्स के सामने एक बड़ी पहेली यह है कि आखिर अब तक महिला के अंदर भ्रूण कैसे रह गया? ममी बनाने के लिए मृतक के अंगों को निकाल दिया जाता था तो भ्रूण को क्यों नहीं निकाला गया। माना जा रहा है कि इसके पीछे कोई धार्मिक कारण हो सकता है। एमंड ने संभावना जताई है कि हो सकता है उन्हें लगता हो कि अजन्मे बच्चे की आत्मा नहीं होती है और वह अगले दुनिया में सुरक्षित रहेगा या हो सकता है कि उसे निकालने में महिला के शरीर को नुकसान का खतरा रहा हो।
तो ऊपर क्यों लिखा था पुजारी का नाम?

यह भी सवाल है कि आखिर ममी के ऊपर पुजारी का नाम क्यों लिखा था। इसके जवाब में संभावना जताई गई है कि शायद पादरी के ताबूत को चोरी कर महिला की ममी को उसमें रखा गया हो। ऐसा करने के कई मामले पहले सामने आए हैं। अमीर और प्रतिष्ठित लोगों के ताबूतों में मूल्यवान चीजें भी होती थीं और उनकी चोरी भी की जाती थी। ताबूत को दोबारा इस्तेमाल करने के लिए भी चोरी कर लिया जाता था। एमंड के मुताबिक करीब 10% ममी गलत ताबूत में होती हैं। (Warsaw Mummy Project)
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पिछले 21 साल में धरती के ग्लेशियर्स इस गति से गायब हुए हैं कि उससे समुद्र स्तर को होने वाले खतरे की गंभीरता पता चलती है। एक स्टडी में बताया गया है कि साल 2000 के बाद से हर साल 267 अरब टन ग्लेशियर गायब हुए हैं। वैश्विक समुद्र स्तर में होने वाली बढ़त का 21% हिस्सा इसी कारण रहा। फ्रांस के रिसर्चर्स ने 2 लाख ग्लेशियर्स के हाई रेजॉलूशन मैप्स के अनैलेसिस में यह पाया है कि ये इन दो दशकों में कैसे बदले हैं और इसमें चिंताजनक नतीजे दिखे हैं। अनैलेसिस में आशंका जताई गई है कि ग्लेशियर मास (द्रव्यमान) हर साल 48 अरब टन की दर से गायब हो रहा है।



दक्षिण अफ्रीका की एक गुफा में कुछ ऐसे सबूत मिले हैं जिनसे करीब बीस लाख साल पहले इंसानी ठिकाने होने के सबूत मिले हैं। पुरातत्वविदों का मानना है कि ये हमारे पूर्वजों का सबसे पहला घर हो सकता है। जेरूसलेम में हीब्रू यूनिवर्सिटी के एक्सपर्ट्स ने दक्षिण अफ्रीका के कालाहारी रेगिस्तान में वंडरवर्क केव को स्टडी किया और यहां प्राचीन परतों में छिपे रहस्यों को खोजा गया। इस जगह का स्थानीय भाषा में नाम ही 'चमत्कार' है और यहां लाखों साल के पुरातन रेकॉर्ड मौजूद हैं। (फोटो: Michael Chazan)



हमारा सौर मंडल कैसे बना? इस सवाल का जवाब ढूंढने के लिए एक और मिशन तैयार किया जा रहा है। अमेरिका की स्पेस एजेंसी NASA अरबों मील दूर एक प्रोब भेजेगी जो इसका पता लगाएगा। जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी और नासा का यह मिशन हीलियोस्फीयर तक 2030 के दशक की शुरुआत में प्रोब भेजेगा। इससे पहले 1977 में लॉन्च किए गए Voyager 1 और Voyager 2 सिर्फ दो ऐसे प्रोब हैं जो हीलियोस्फीयर के बाहर पहुंचे हैं, धरती से 14 और 11 अरब मील दूर।



करीब तीन साल पहले बोत्सवाना के कालाहारी रेगिस्तान में एक छोटा ऐस्टरॉइड आसमान से आ गिरा। अब वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि यह ऐस्टरॉइड आया कहां से है। माना जा रहा है कि यह हमारे सौर मंडल के दूसरे सबसे बड़े ऐस्टरॉइड Vesta का हिस्सा रहा होगा। इसे 2018LA नाम दिया गया है और सबसे पहले इसे यूनिवर्सिटी ऑफ ऐरिजोना के कैटलीना स्काई सर्वे में टेलिस्कोप की मदद से ऑब्जर्व किया गया था।


