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परमाणु बमों की ढेर पर बैठी दुनिया के लिए आज का दिन बेहद अहम है। आज से 60 साल पहले शीतयुद्ध के जमाने में रूस ने दुनिया के सबसे शक्तिशाली परमाणु बम का परीक्षण किया था। यह परमाणु बम अमेरिका के जापानी शहर हिरोशिमा पर गिराए गए परमाणु बम से 3333 गुना ज्यादा शक्तिशाली था और एक झटके में किसी महानगर को राख के ढेर में बदल सकता है। यह मानवता की ओर से किया गया अब तक का सबसे शक्तिशाली विस्फोट था जिससे पूरी दुनिया दहशत में आ गई थी। इस परमाणु बम का नाम जा बांबा (Tsar Bomba) था और 30 अक्टूबर 1961 को इसका परीक्षण आर्कटिक समुद्र के पास स्थित सेवेर्नी द्वीप पर किया गया था। यह परमाणु विस्फोट इतना शक्तिशाली था कि इसको 1000 किमी दूर से भी देखा गया था। आइए जानते हैं रूस के इस प्रलय लाने वाले परमाणु बम के बारे में सबकुछ.....
रूसी परमाणु बम की महाविनाशक ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसको लंदन जैसे शहर पर गिराने पर हर तरफ राख दिखाई देगी। एक झटके में 60 लाख लोग खत्म हो जाएंगे। इस जार बांबा बम के धमाके के बाद हिरोशिमा और नागासाकी में गिराए गए परमाणु बमों की कुल क्षमता का 1570 गुना ज्यादा ऊर्जा पैदा होगी। जॉर बांबा से 50 मेगाटन टीएनटी के बराबर विनाश होगा। रूस के इस धमाके के शनिवार को 60 साल पूरे हो गए और इसकी गूंज आज भी दुनिया में सुनी जा सकती है। वैश्विक स्तर पर हथियारों की रेस अब नए मुकाम पर पहुंच रही है। चीन ने अंतरिक्ष में चक्कर काटने वाली मिसाइल दागकर कोहराम मचा दिया है। ब्रिटिश इतिहासकार एलेक्स वेल्लेरस्टेन कहते हैं कि आज इस बम को लंदन शहर पर गिराया जाय तो करीब 58 लाख लोगों की मौत हो जाएगी। इसका असर लंदन से 9 किमी दूरी तक भारी तबाही मचेगी। इसके विस्फोट से हर इमारत जमीदोज हो जाएगी और वहां मौजूद प्रत्येक व्यक्ति की मौत हो जाएगी। इसका हल्का असर करीब 50 किमी दूर तक रहेगा। इस परमाणु बम की विनाशक क्षमता को देखते हुए इसे धरती के खात्मे का हथियार कहा जाता है।
इस परमाणु बम को रूसी विमान ने आर्कटिक समुद्र में नोवाया जेमल्या के ऊपर बर्फ में गिराया था। इस महाविनाशक परमाणु बम को प्रोग्राम izdeliye 202 के तहत बनाया गया था। बाद में जब इस परमाणु बम के बारे में पश्चिमी दुनिया को पता चला तो इसका नाम 'Tsar Bomba' कर दिया गया। उधर, विशेषज्ञों का कहना है कि रूस ने अपने परीक्षण के जरिए शानदार तकनीकी उपलब्धि हासिल की थी। इस महाविनाशक परमाणु बम का खौफ इतना ज्यादा था कि कैमरों को सैकड़ों मील की दूरी पर लगाया गया था। साथ ही उन्हें लो लाइट पोजिशन में रखा गया था ताकि वे परमाणु विस्फोट की चमक में 'अंधे' न हो जाएं। इन शक्तिशाली कैमरों ने करीब 40 सेकंड तक आग के गोले का वीडियो बनाया और उसके बाद यह मशरूम के बादल के रूप में बदल गया। इस विस्फोट स्थल से 100 मील की दूरी पर स्थित एक विमान ने मशरूम के आकार के गुबार का वीडियो बनाया। यह करीब 213,000 फुट की ऊंचाई तक गया था। इस विस्फोट के फुटेज को रूस ने करीब 6 दशक तक टॉप सीक्रेट रखा था लेकिन अब रोस्तम के 75 साल पूरे होने पर उसे जारी किया था।
रूस की सेना ने Tsar Bomba को RDS-220 नाम दिया था। यह दुनिया में बनाया गया सबसे बड़ा परमाणु बम है। इसे उस समय बनाया गया था जब अमेरिका और सोवियत संघ के बीच कोल्ड वॉर अपने चरम पर था। सोवियत संघ ने अमेरिका के थर्मोन्यूक्लियर डिवाइस को टक्कर देने के लिए इस इवान या जॉर बॉम्बा नामक परमाणु बम का निर्माण किया था। वर्ष 1954 में अमेरिका ने अपने सबसे बड़े थर्मोन्यूक्लियर डिवाइस का मार्शल आईलैंड पर परीक्षण किया था। यह डिवाइस 15 मेगाटन का था। इसका नाम कास्टल ब्रावो था। यह उस समय के सभी परमाणु बमों से ज्यादा ताकतवर था। इसकी सूचना जब सोवियत संघ को लगी तो उसने अमेरिका को टक्कर देने की ठानी। इस विस्फोट के बाद हजारों किमी दूर स्थित नार्वे और फिनलैंड में लोगों के घरों के शीशे टूट गए थे। महाविस्फोट के बाद मशरुम के आकार का जो बादल उठा वह एवरेस्ट की चोटी से 7 गुना ऊंचाई तक गया।
सोवियत संघ ने अमेरिका को जवाब देने के लिए मात्र 7 साल के अंदर दुनिया का सबसे बड़ा परमाणु बम बना डाला। इस परमाणु बम को पहले ट्रेन के जरिए ओलेन्या एयरबेस ले जाया गया जहां से उसे लंबी दूरी तक मार करने में सक्षम Tu-95 पर लादा गया। 30 अक्टूबर को इस बॉम्बर ने उड़ान भरी और करीब 600 मील की यात्रा करके सेवेर्नी द्वीप पहुंचा। यह द्वीप आर्कटिक के काफी अंदर है। बॉम्बर ने बम को गिरा दिया जिसमें एक पैराशूट लगा हुआ था। इससे बम धीरे-धीरे धरती पर गिरा और विमान को इतना समय मिल गया कि वह विस्फोट की जद में नहीं आ सका। जब यह बम जमीन से करीब 13 हजार फुट की ऊंचाई पर पहुंच गया तब उसमें विस्फोट कर दिया गया। इस विस्फोट से रिक्टर पैमाने पर 5 की तीव्रता का भूकंप आया। जॉन बॉम्बा के परीक्षण के बाद अमेरिका और रूस ने वर्ष 1963 में एक संधि पर हस्ताक्षर किया। इसके बाद दोनों देशों ने हवा में परमाणु बम के परीक्षणों पर रोक लगा दी। इसके बाद दोनों देशों ने जमीन के अंदर परमाणु परीक्षण शुरू किया। अमेरिका ने सोवियत संघ से बड़ा परमाणु बम बनाए जाने की बजाय छोटे परमाणु बम बनाने पर जोर दिए ताकि उन्हें मिसाइलों में फिट किया जा सके।
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